अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला कहा हम हाईकोर्ट के…..

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसख्यंक दर्जे पर आज यानी शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। आपकों बता दें कि उच्च न्यायालय ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को नए सिरे से तय करने के लिए तीन जजों की एक समिति गठित की है । वहीं अब नई बेंच एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने के लिए नए मानक तय करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया है,जिसमें एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार कर दिया था ।

सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अल्पसंख्यक मानने के मानदंड क्या हैं और इसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों को रेगुलेट किया जा सकता है।
आखिर क्यों शुरु हुआ विवाद?
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान ने ‘अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज’ के रूप में की थी, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक उत्थान के लिए एक केंद्र बनाना था। बाद में, 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और इसका नाम ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ रखा गया।
एएमयू अधिनियम 1920 में 1951 और 1965 के संशोधनों के कारण कानूनी विवाद शुरू हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में अपने फैसले में कहा कि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता। फैसले का मुख्य तर्क यह था कि इसकी स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के अंतर्गत हुई है। ताकि इसकी डिग्री को सरकारी मान्यता मिल सके। अदालत ने कहा कि अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रयासों का परिणाम हो सकता है, लेकिन इसका उद्देश्य केवल एक समुदाय के लिए सीमित नहीं है।
इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यकों द्वारा की गई थी।

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