वक्फ की बदहाली जिम्मेदार कौन! सिस्टम या हम?…

जस्टिस सच्चर कमेटी की रिर्पोट के अनुसार भारत में लगभग 192000 रजिस्टर्ड वक्फ है अनरजिस्टर्ड वक्फ की तादाद भी बहुत ज्यादा है क्योंकि मुसलमान पब्लिक से चंदा लेकर जो मस्जिद, मदरसे, स्कूल, खानखा या संस्थान वगैरा बनाते हैं उसे कौम के नाम पर वक्फ नही करते इसलिए अनरजिस्टर वक्फ का आंकड़ा भी लाखों में हो सकता हैं। वक्फ का अर्थ है कि उसकी संपत्ति का अल्लाह की मिल्कियत में दे दिया जाना और उम्मत मुस्लिमा की भलाई और कार खैर के लिए इसका इस्तेमाल किया जाना है।

जस्टिस सच्चर की इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अगर मुसलमान सिर्फ अपनी वक्फ संपत्तियों को सही से मैनेज कर ले तो इसकी आमदनी से दुनिया के बेहतरीन संस्थान बना सकते हैं। मगर क्या आज आजादी के 76 साल बाद भी हम अपने औकाफ का सही इस्तेमाल कर पाए या इससे कौम की फलाह बेहबूद का कोई काम कर पाए।

उत्तराखंड के परिपेक्ष में अगर हम देखे तो उत्तराखंड में वक्फ की काफी संपत्ति है मगर मैनेजमेंट लूट खसोट वाला। लोग वक्फ संपति का इस्तेमाल सालो से कर रहें है मगर उसका किराया नहीं देते और अगर देते भी है तो मात्र कुछ रुपए । जबकि शिक्मी किरायेदार रखकर हर साल लाखों रुपए कमाते है मगर वक्फ को हज़ार भी देने में परेशानी होती हैं। संस्थाओं में हर साल लाखों, करोड़ों रुपए का पब्लिक से देश, विदेश से चंदा होता है, लाखो करोड़ों रूपया दरगाह कलियर शरीफ में इक्ट्ठा हो जाता है, मगर इससे इस उम्मत मुसलिमा की आर्थिक, सामाजिक वा शैक्षिक स्थिति में कितनी तब्दीली आती है इसका कोई आंकड़ा न वक्फ बोर्ड के पास है ना हमारे समाज के पास। आज भी दरगाह में, मस्जिदों में, गली मोहल्लों में सवालियो को भरमार, चंदा करने वालो की भरमार। बल्कि चंदा खोरी के इस इस धंधे से बनी संपति उनकी अपनी निजी संपत्ति बन जाती हैं। यह लूटमार जारी हैं और मुस्लिम कौम आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक आधार से दिन ब दिन नीचे गिरती जा रही है। हमारे पास इतना सब कुछ होने के बाद भी क्या शिक्षा प्रदान करने के लिए अच्छे स्कूल, कॉलेज, इंजीनियरिंग, मेडिकल वा रिसर्च संस्थान, अच्छे आवास, अच्छे अस्पताल, कम्युनिटी सेंटर, ट्रेनिंग सेंटर, कम्युनिटी डेवलपमेंट सेंटर या इस तरह का कुछ भी है। लड़कियों की तालीम का हमारे पास क्या इंतेजाम है औरतों के सशक्तिकरण वा स्वालंभिता के लिए हमारे पास क्या स्कीम हैं।

यह सारे काम यह मुस्लिम उम्मा खुद कर सकती हैं अगर अपने वक्फ को ईमानदारी से सही तरह से मैनेज कर ले। वक्फ बोर्ड में जो जिम्मेदार है वो भी तो मुसलमान ही है। वक्फ को इस्तेमाल करने वाले भी अक्सर मुसलमान ही है तो क्या उनको अल्लाह के बंदों की भलाई के लिए, गरीबों की मदद के लिए, समाज के उत्थान के लिए, इन अल्लाह की वक्फ करदा जायेदादो का सही देख भाल करके इनसे कौम मिल्लत के लिए ऐसे काम नहीं करने चाहिए कि उत्तराखंड में नही पूरे देश में इसकी मिसाल बन सके। अभी भी वक्त है और वक्फ बोर्ड वा मुस्लिम उम्मा की जिम्मेदारी है कि अपने अपने हिस्से का काम पूरी ईमानदारी से करे। वक्फ के बेहतर मैनेजमेंट से इस कौम की हालत बदली जा सकती है शर्त है दियानतदारी और बदलने की लगन।

अब वक्फ को खुर्द बुर्द करने की स्कीम छोड़ दो और वक्फ की सही आमदनी से दुनिया की बेहतरीन संस्थाएं विकसित कर इस मुस्लिम समाज को शीर्ष पर ले जाने का अनथक प्रयास शुरू कर दो नही तो उस मालिक खालिक को तो हिसाब देना पड़ेगा और वहां राजनीतिक दलीलें काम नही आयेगी। बंदरबाट सब यही रह जाना है और जाएगा सिर्फ तकवा और परहेजगारी। वहां पोजीशन काम नही आयेगी काम आयेगी सिर्फ पायस नेस।

आपका,
खुर्शीद अहमद,
37, प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून उत्तराखंड।

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