UCC को लेकर बोले अरशद मदनी! यह सिर्फ मुसलमानों का नहीं बल्कि पूरे देश का….

देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर बहस शुरू हो गई है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भाजपा सरकार पर निशाना साधा। मदनी ने कहा, ”यह मुद्दा सिर्फ मुसलमानों का नहीं है, बल्कि सभी भारतीयों का है। हम 1300 साल से देश में स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन करते आ रहे हैं।”

उन्होंने कहा, ”सरकारें आई और गईं, लेकिन भारतीय अपने धर्म पर जीते और मरते रहे। इसलिए हम किसी भी स्थिति में अपने धार्मिक मामलों और पूजा के तरीकों से समझौता नहीं करेंगे। कानून के दायरे में रहकर अपने धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएंगे। सरकार को मशविरा करना चाहिए।”

कयामत के दिन तक संशोधन नहीं किया जा सकता
मदनी ने कहा, ”यूनिफॉर्म सिविल कोड पर जोर देना संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के विपरीत है। सवाल मुसलमानों के पर्सनल लॉ का नहीं बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान को यथावत बनाए रखने का है। हमारा पर्सनल लॉ कुरान और सुन्नत पर आधारित है। इसमें कयामत के दिन तक संशोधन नहीं किया जा सकता है।”

उन्होंने कहा, ”ऐसा कहकर हम कोई असंवैधानिक बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष संविधान के अनुच्छेद 25 ने हमें ऐसा करने की आजादी दी है। समान नागरिक संहिता मुसलमानों के लिए अस्वीकार्य है और देश की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक है।”

हुक्मरान कोई भी फैसला नागरिकों पर न थोपे
मौलाना मदनी ने कहा, ”यूनिफॉर्म सिविल कोड शुरू से ही विवादास्पद मुद्दा रहा है। विभिन्न धार्मिक और सामाजिक वर्गों और जनजातियों के लोग अपने धर्म की शिक्षाओं का पालन करके शांति और एकता के साथ रहते आए हैं।”

उन्होंने कहा, ”यह गैर-एकरूपता 200 साल पहले या आजादी के बाद पैदा नहीं हुई, बल्कि यह भारत में सदियों से मौजूद है। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का क्या औचित्य और जवाब है? जब पूरे देश में नागरिक कानून (सिविल लॉ) एक जैसा नहीं है, तो पूरे देश में एक पारिवारिक कानून (फैमिली लॉ) लागू करने पर जोर क्यों दिया जा रहा है?’

मदनी ने कहा, ”हम हुक्मरानों से सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि कोई भी फैसला नागरिकों पर नहीं थोपा जाना चाहिए, बल्कि कोई भी फैसला लेने से पहले आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। ताकि फैसला सभी को स्वीकार्य हो।”

उन्होंने कहा, ”समान नागरिक संहिता के सन्दर्भ में हमारा यह भी कहना है कि इस पर कोई भी निर्णय लेने से पहले सरकार को देश के सभी धर्मों और सामाजिक एवं आदिवासी समूहों के प्रतिनिधियों से परामर्श करना चाहिए और उन्हें विश्वास में लेना चाहिए। यही तो लोकतंत्र का तकाजा है।”

गुमराह करने को ली जाती है अनुच्छेद 44 की आड़
उन्होंने कहा, ‘जमीयत उलेमा ए हिंद यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करती है, क्योंकि यह संविधान में नागरिकों को अनुच्छेद 25, 26 में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों के सरासर विरुद्ध है। भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि देश का अपना कोई धर्म नहीं है, यह सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करता है, धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है। देश के प्रत्येक नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता है।

मदनी ने कहा, ”भारत जैसे बहुलवादी समाज में, जहां सदियों से विभिन्न धर्मों के अनुयायी अपने-अपने धर्मों की शिक्षाओं का पालन करते हुए शांति और सद्भाव के साथ रहते आए हैं। वहां समान नागरिक संहिता लागू करने का विचार अपने आप में न केवल आश्चर्यजनक लगता है।”

उन्होंने कहा, ”ऐसा प्रतीत होता है कि एक धर्म विशेष वर्ग को ध्यान में रखकर बहुसंख्यक को गुमराह करने के लिए अनुच्छेद 44 की आड़ ली जाती है। कहा जाता है कि यह बात तो संविधान में कही गई है, हालांकि स्वयं आरआरएस के दूसरे प्रमुख गुरु गोलवालकर ने कहा कि ‘समान नागरिक संहिता भारत के लिए अप्राकृतिक है और इसकी विविधताओं के विपरीत है।”

विशेष मानसिकता के लोग बहुसंख्यक को गुमराह कर रहे
मदनी ने कहा, ‘नागरिकों के मौलिक अधिकारों की गारंटी संविधान में दी गई है। संविधान के अध्याय 3 के तहत उल्लिखित मूल अनुच्छेद में किसी भी संगठन को चाहे संसद हो या सुप्रीम कोर्ट, बदलने का अधिकार नहीं है। संविधान तो स्वतंत्रता के बाद तैयार हुआ। जबकि इतिहास बताता है कि सदियों से इस देश में लोग अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करते आ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि लोगों की धार्मिक मान्यताएं और रीति-रिवाज अलग-अलग रहे हैं। लेकिन उनमें कभी कोई असहमति या इसको लेकर तनाव नहीं पैदा हुआ। वास्तव में एक विशेष मानसिकता के लोग यह कह कर बहुसंख्यक को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं।

मदनी ने कहा, ”जमीअत उलेमा-ए-हिंद पहले दिन से इस प्रयास का विरोध करती आई है क्योंकि वह मानती है कि समान नागरिक संहिता की मांग नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान की आत्मा को नष्ट करने का एक प्रयास है। संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के विपरीत, मुसलमानों को अस्वीकार्य और देश की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक है।”

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