UP चुनावों को लेकर अखिलेश यादव को है TINA फैक्टर पर भरोसा, क्या CM ..

उत्तर प्रदेश के सियासी घमासान में अखिलेश यादव पिछले चुनावों के मुकाबले ज्यादा सतर्क नजर आ रहे हैं।

शुरुआत से वह इस बात को कहने से गुरेज नहीं करते हैं कि पिछले चुनावों में बड़ी पार्टियों से गठबंधन करने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है।

लिहाजा इस बार अखिलेश यादव ने छोटे दलों के साथ आगे आने का फैसला किया है। इस फैसले के विश्लेषण करने पर आप पाएंगे कि अखिलेश यादव को TINA फैक्टर पर ज्यादा भरोसा है।

अब इस TINA फैक्टर को समझने के लिए आपको पूर्व के कुछ चुनावों के नतीजों को समझना होगा।

पश्चिम बंगाल में बीजेपी के खिलाफ मजबूत विकल्प ममता बनर्जी थीं तो जनता की नजर में ममता बनर्जी के साथ ‘टीना फैक्टर’ था !

2015 के चुनावों में बिहार में यह फैक्टर नीतीश कुमार की तरफ था।

अखिलेश यादव मानते हैं कि योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जनता के सामने वह ही सबसे मजबूत विकल्प हैं।

इसी के आधार पर वह अपने आप को और मजबूत करने के लिए छोटे दलों को साथ ले रहे हैं।

पिछले चुनावों तक आरएलडी उनके साथ थी लेकिन आगामी चुनावों के लिए जयंत चौधरी की तरफ से कोई संकेत नहीं दिए गए हैं।

ऐसे में जयंत चौधरी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा सीटों की उम्मीद कर रहे होंगे, लेकिन अखिलेश तो यह साफ कर चुके हैं कि वह छोटे दलों को ज्यादा सीटें देने के बजाय अपने उम्मीदवारों पर भरोसा करेंगे।

अब वह जिस छोटे दल से चर्चा कर रहे हैं वह अखिलेश की उम्मीद से ज्यादा सीटें मांग रहा है।

उनकी मुलाकात सुहेलदेव समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर के साथ हुई लेकिन उनकी अत्यधिक सीटों की मांग से वह तुरंत कोई फैसला नहीं ले सके।

एक समय में निषाद पार्टी, सपा के साथ हुआ करती थी लेकिन इन दिनों वह बीजेपी के साथ है।

इधर मायावती की जमीन पर डटी हुई है, बसपा ने किसी दूसरे फैक्टर के साथ जाने के बजाय अपनी सोशल इंजीनियरिंग पर भरोसा जताया है और पुराने वोट बैंक को मजबूती देने की दिशा में काम किया जा रहा है।

पुराने साथी हुए दूर: अखिलेश को इन चुनावों में कुछ अपने पुराने साथियों की कमी भी महसूस हो रही है

वहीं दूसरी तरफ आजम खान के बीमार होने के कारण भी अखिलेश अकेले हैं, लेकिन जानकारी मिल रही है कि आजम खाम के बीमार होने के बाद पार्टी का जो रवैया है, उससे आजम खान की पत्नी नाराज हैं। अगर चुनाव से पहले उनकी नाराजगी सार्वजनिक तौर पर बाहर आ गई तो इसका खामियाजा भी अखिलेश को भुगतना पड़ेगा।

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