जमीयत के दोनों अध्यक्षों को दारुल उलूम में बड़ी जिम्मेदारी के बाद- जमीयत उलेमा हिन्द के दोनों गुटों को एक करने की तैयारी शुरू-

  • दोनों गुटों के अध्यक्षों को मिली दारुल उलूम में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी
  • जमीयत को एकजुट करने के लिए 3 रुकनी कमेटी बनाई
  • जल्दी एक प्लेटफार्म पर होगे जमिअत उलाम ए हिंद

देवबंद सहारनपुर। देवबंदी विचारधारा के सामाजिक और धार्मिक संगठन (19 नवंबर 1919 को स्थापित) के दोनो गुटों के राष्ट्रीय अध्यक्षों यानि पूर्व सांसद मौलाना महमूद मदनी गुट के अध्यक्ष मौलाना कारी उस्मान मंसूरपुरी और महमूद मदनी के चाचा एवं दूसरे धडे के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी को विश्व विख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्था दारूल उलूम देवबंद में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया हैं।

दोनों गुटों के अध्यक्षों को मिली दारुल उलूम में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गइ हैंजमीयत को एकजुट करने के लिए 3 रुकनी कमेटी बनाई गइ है उम्मीद की जा रही है कीं जल्दी जमिअत उलाम ए हिंद एक होते नजर आएंगे। हालांकि दोनों ग्रुपों को एक करने की कोशिश पहले भी की जा चुकी है इसमें कोई नतीजा नहीं निकला।

जिसके मुताबिक दारूल उलूम ने पूर्व में नायब मोहतमिम पद पर कार्य कर चुके और जमीयत उलमाएं हिंद के एक धडे के अध्यक्ष मौलाना कारी उस्मान को संस्था का कार्यवाहक मोहतमिम नियुक्त किया गया। मौलाना अरशद मदनी को संस्था का सदर मुदर्रिस यानि एकेडमिक विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। यह पद पिछले माह मौलाना सईद अहमद पालनपुरी के कोरोना संक्रमण से निधन के बाद से रिक्त था। इस पद पर मौलाना अरशद मदनी के पिता एवं जाने-माने स्वतंत्रता सग्राम सैनानी मौलाना हुसैन अहमद मदनी भी रह चुके है। जिन्हें 1954 में पहला बडा नागरिक सम्मान पदम विभूषण मिला था। मौलाना अरशद मदनी दारूल उलूम के हदीस के वरिष्ठ उस्ताद के पद पर तीन दशक से भी ज्यादा से कार्यरत है।

दारूल उलूम की प्रबंध समिति की बैठक में इन दो नियुक्तियों के अलावा दो और महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां की गई है। संस्था के मोहतमिम (कुलपति) मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी बनारसी को शेखुल हदीस के महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी भी दी गई है। प्रबंध समिति ने शामली जिले के कांधला कस्बे के गांव गढी दौलत के मदरसा जामिया बदरूल के प्रमुख मौलाना आकिल कासमी को मजलिसे शूरा का सदस्य मनोनीत किया है। अब संस्था में सभी 21 सदस्यों की नियुक्तियां पूरी हो चुकी है

तीन दिन तक चली प्रबंध समिति की बैठक बीती देर रात समाप्त हुई। आज संस्था की ओर से बताया गया कि कोरोना संक्रमण के कारण देशभर में आई आर्थिक मंदी के कारण संस्था का वार्षिक बजट 36 करोड से हटाकर 30 करोड कर दिया गया। संस्था में कार्यरत न तो किसी शिक्षक और कर्मचारी का वेतन और भत्ते घटाएं गए है और न ही किसी स्थाई कर्मचारी की सेवाएं समाप्त की गई। जाहिर है बजट की कटौती से संस्था के निर्माण कार्य आदि प्रभावित होंगे। संस्था की ओर से कहा गया कि प्रशासन की अनुमति मिलने पर ही बाहर के छात्रों को संस्था में प्रवेश दिया जाएगा। प्रबंध समिति की बैठक में डूबरी असम के सांसद मौलाना बदरूद्दीन अजमल, पूर्व मोहतमिम गुलाम मोहम्मद वस्तानवी, पूर्व मोहतमिम दिवंगत मौलाना मरगुबूर्रहमान के पुत्र अनवारूरहमान आदि सभी सदस्य शामिल हुए।

दारूल उलूम में महत्वपूर्ण नियुक्तियों के बाद जमीयत के दोनो अध्यक्ष क्या पदों को छोडेंगे ?

दारूल उलूम देवबंद की मजलिसे शूरा और 30 साल मोहतमिम रहे दिवंगत मौलाना मरगुबूर्रहमान ने करीब दो दशक पूर्व यह तय किया था कि कोई भी व्यक्ति दारूल उलूम में बडी जिम्मेदारी प्राप्त करता है तो वह जमीयत का पदाधिकारी नहीं हो सकता। इस नियम के लागू होने के साथ उस वक्त संस्था के नायब मोहतमिम मौलाना कारी उस्मान ने जमीयत उलमाएं हिंद का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर नायब मोहतमिम पद छोड दिया था। ध्यान रहे दारूल उलूम की मजलिसे शूरा के सदस्य रहे पूर्व सांसद मौलाना असद मदनी के छह फरवरी 2006 को निधन हो जाने के बाद जमीयत उलमाएं हिंद असद मदनी के छोटे भाई अरशद मदनी और बेटे महमूद मदनी के दो गुटों में बंट गई थी। अब मजलिसे शूरा ने जमीयत के दोनो गुटों के अघ्यक्षों को दारूल उलूम में महत्वपूर्ण और सम्माजनक पद दे दिए है और दोनो गुटों में मेल-मिलाप कराने के लिए तीन सदस्यों की कमेटी गठित की गई है। अनुमान लगाया जा रहा है कि जमीयत के दोनो धडे एक हो सकते है और उसका नेतृत्व महमूद मदनी को मिल सकता है।

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