हाल ही में, नीति आयोग ने तुर्की के एक कार्यक्रम को सराहा है, जो भारत में विरोध का कारण बना है। यह कार्यक्रम तुर्की के “SEKEM Initiative” से प्रेरित है, जो मिस्र में जैविक और बायोडायनामिक कृषि पद्धतियों के माध्यम से मरुस्थलीकरण को रोकने और कृषि व्यवसायों को विकसित करने पर केंद्रित है। इस पहल ने 684 हेक्टेयर मरुस्थलीकरण भूमि को पुनः प्राप्त किया है और 477 किसानों को प्रशिक्षित किया है। इसके परिणामस्वरूप मिस्र की कपास उद्योग में कृत्रिम कीटनाशकों का उपयोग 90% तक कम हुआ है, जबकि पैदावार में 30% की वृद्धि हुई है।
नीति आयोग ने इस पहल को भारत में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया है। इसका उद्देश्य किसानों को जैविक और पर्यावरणीय रूप से स्थिर कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित करना है। हालांकि, कुछ आलोचकों का मानना है कि यह कार्यक्रम तुर्की की नीतियों को भारत में लागू करने का प्रयास है, जो स्थानीय परिस्थितियों से मेल नहीं खाता। इससे संबंधित विरोध मुख्य रूप से इस पहल के तुर्की से प्रेरित होने और भारतीय संदर्भ में इसके प्रभावशीलता पर उठाए गए सवालों के कारण है।
अंततः, नीति आयोग का यह कदम तुर्की के कृषि मॉडल को भारत में लागू करने की दिशा में एक प्रयास प्रतीत होता है, जिसे लेकर विभिन्न दृष्टिकोण और प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं।