वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं की सुनवाई 15 मई 2025 को निर्धारित की गई है। इससे पहले, 5 मई को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने अदालत को सूचित किया कि उसने अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधानों की क्रियान्वयन प्रक्रिया स्थगित कर दी है, जिसमें गैर-मुस्लिमों की नियुक्तियां और वक्फ संपत्तियों की पुनः घोषणा शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सात दिन में जवाब देने को कहा है, और याचिकाकर्ताओं को पांच दिन में अपनी प्रतिक्रिया दाखिल करने की अनुमति दी है। अगली सुनवाई 15 मई को होगी, जिसमें अंतरिम राहत पर निर्णय लिया जाएगा।
इस अधिनियम के खिलाफ विभिन्न राजनीतिक दलों और मुस्लिम संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। इनमें डीएमके, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान, जमीअत उलेमा-ए-हिंद, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा और भारतीय यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) शामिल हैं। इन याचिकाओं में अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 और 300A का उल्लंघन बताते हुए इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।
अधिनियम के प्रमुख विवादास्पद प्रावधानों में वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति, ‘वक्फ बाय यूज़र’ सिद्धांत का उन्मूलन, वक्फ संपत्तियों की स्वामित्व निर्धारण के लिए कलेक्टर को अधिकार देना और वक्फ ट्रिब्यूनल में इस्लामी कानून के विशेषज्ञों की संख्या में कमी शामिल हैं। इन प्रावधानों को मुस्लिम संगठनों ने धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन बताया है।
सुप्रीम कोर्ट की आगामी सुनवाई में इन याचिकाओं पर विचार किया जाएगा, और यह तय किया जाएगा कि क्या अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर अंतरिम राहत दी जाए। इससे पहले, केंद्र सरकार ने अदालत को सूचित किया था कि उसने अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधानों की क्रियान्वयन प्रक्रिया स्थगित कर दी है।