- मोहम्मद मलिक की शारदा नगर चौराहे के फुटपाथ पर एक छोटी सी चाय की दुकान है,
- दोस्तों की मदद से एनजीओ बनाया,
- फिर प्ले ग्रुप से लेकर कक्षा चार तक इंग्लिश मीडियम स्कूल खोला,
- जिसका 1 महीने का करीब ₹20 हजार का खर्च जो मलिक चाय बेचकर उठाता है,
कानपुर.यहां के शारदा नगर में रहने वाले 29 वर्षीय मोहम्मद महबूब मलिक आर्थिक तंगी के कारण अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे।
10वीं पास मलिक अब चाय बेचकर 40 ऐसे परिवारों के बच्चों की शिक्षा का बोझ उठा रहे हैं, जो तंगहाली के चलते बच्चों को स्कूल भेजने में समर्थ नहीं है।
मलिक की शारदा नगर चौराहे के फुटपाथ पर एक छोटी सी चाय की दुकान है, जिससे होने वाली आमदनी का 80%इन बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर देते हैं।
मलिक ने एक अखबार संवाददाता से से बातचीत में बताया,मैं पांच भाइयों में सबसे छोटा हूं। बचपन बेहद गरीबी में बीता। परिवार बड़ा था और कमाने वाले सिर्फ पिता थे।
संसाधनों की कमी के कारण बमुश्किल हाईस्कूल तक ही पढ़ सका। जब किसी बच्चे को पढ़ने की उम्र में कूड़ा बीनते या भीख मांगते हुए देखतातो मन विचलित हो जाता था। उसमें उन्हें अपना बचपन दिखने लगता।
दोस्त की राय से मिली पहचान
मोहम्मद मलिक ने बताया,‘‘2017 में अपनी जमा पूंजी के जरिए बेसहारा बच्चों के लिए कोचिंग सेंटर खोला था।
यह सेंटर शारदा नगर, गुरुदेव टॉकीज के पास मलिक बस्ती और चकेरी के कांशीराम कॉलोनी में खोला गया था, जिसमें बच्चों को मुफ्त पढ़ाया जाता था।’’ जब इस काम की जानकारी मलिक के दोस्त नीलेश कुमार को हुई तो उसने उनका हौसला बढ़ाया।
नीलेश ने एनजीओ बनाकर सेंटर संचालित करने की राय दी। ‘मां तुझे सलाम फाउंडेशन’ नाम से एनजीओ बनाया और इसी के जरिए सेंटर से 40 बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दी जा रही है।
हर महीने करीब 20 हजार रु.का खर्च
मलिक बताते हैं कि बच्चों की किताबें, यूनिफार्म, स्टेशनरी, जूते-मोजे, बैग खरीदकर उन्हें एक बार दिया जाता है। स्कूल किराए के भवन में चल रहा है, जिसका हर महीने करीब 10 हजार रुपए किराया है।
तीन शिक्षक हैं, वेपैसा नहीं लेते। टीचर मानसी शुक्ला बीएड कर चुकी हैं और टेट की तैयारी कर रही हैं। दूसरे टीचर पंकज गोस्वामी हैं, जो मेडिकल रिप्रजेंटेटिव हैं। बच्चों को पढ़ाने के बाद अपने काम पर जाते हैं। तीसरी टीचर आकांक्षा पांडेयबीएड कर रही हैं।
परीक्षा के दिन फ्री में चाय
मलिक की चाय की दुकान कोचिंग और मंडी के बीच में है। आईआईटी, सीपीएमटी, इंजीनियरिंग की तैयारी करने वाले छात्र आसपास रहते हैं।
जब प्रतियोगी परीक्षा होती है तो छात्रों को निशुल्क चाय होती है। मलिक कहते हैं कि मैंने अपनी दुकान पर एक स्लोगन भी लगा रखा है-‘‘मां जब भी तुम्हारी याद आती है, जब तुम नहीं होती हो तो मलिक भाई की चाय काम आती है।’’वे आगे ये भी बताते हैं कि शुरुआत में लोगों ने मजाक उड़ाया,
लेकिनउनकी बातों की परवाह कभी नहीं की। जो मुझे अच्छा लगता है, वहकाम करने से पीछे नहीं हटता।
चाय वाला सबके मन पढ़ लेता है
मलिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रभावित हैं। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री अच्छा काम इसलिए कर लेते हैं क्योंकि उन्होंने भी बचपन में चाय बेची थी। चाय वाला सभी के दिमाग को पढ़ लेता है।
जब कोई ग्राहक आता है तो हम लोग उसे देखकर समझ जाते है कि वो कब खुश है और कब दुखी है। उसे किस बात को लेकर तनाव है।
एक चाय वाला सब के दिल की बात को जानता है। हमारे प्रधानमंत्री ने उन चीजों को महसूस किया है, इसलिए उन्हे पता है कि किसे कब क्या चाहिए