कमलनाथ सरकार पर खतरे के बादल-कुछ बड़ा गेम खेलने की तैयारी में सिंधिया!

नई दिल्ली): मध्य प्रदेश में चल रहे सियासी घमासान के बीच कांग्रेस के शीर्ष नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया कुछ बड़ा खेल खेलने की तैयारी में दिख रहे हैं। अब तक सार्वजनिक रूप से कोई बयान देने से बच रहे सिंधिया अचानक शक्ति प्रदर्शन करते दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे आर-पार के मूड में हैं और संभव है कि वे पाला भी बदल सकते हैं। हालांकि उनके सियासी चाल को लेकर अभी कुछ भी पक्का नहीं कहा जा सकता।

अब यह भी कहना मुश्किल हो रहा है कि सिंधिया पीसीसी चीफ, राज्य सभा सीट अथवा उपमुख्यमंत्री पद पर राजी हो सकते हैं। बात काफी आगे तक जा चुकी है। सिंधिया समर्थक 17 विधायक लापता हैं। इसे फिलवक्त तक तो पार्टी पर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर माना जा रहा है। लेकिन कहा यह जा रहा है कि सिंधिया कुछ बड़ा फैसला कर चुके हैं। अपने पिता माधवराव सिंधिया की जयंती मनाने के लिए आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने के लिए ज्योतिरादित्य मंगलवार को ग्वालियर में होंगे। माना जा रहा है कि इस दौरान वह पार्टी छोडऩे या नई पार्टी बनाने जैसी कोई बड़ी घोषणा कर सकते हैं। उनकी पिछले कुछ महीनों के बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ हुई कई मुलाकातों को इसी से जोड़ कर देखा जा रहा है।

सिंधिया की दादी राजमाता विजय राजे सिंधिया पहले जनसंघ में रहीं और बाद में वे भाजपा से सांसद रहीं। सिंधिया की एक बुआ यशोधरा राजे सिंधिया मध्य प्रदेश भाजपा में हैं तो दूसरी बुआ वसुंधराराजे सिंधिया राजस्थान भाजपा में, जो मुख्यमंत्री भी रहीं। सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया भी कांग्रेस में आने से पहले जनसंघ में रहे।
इस लिहाज से उनका बैकग्राउंड भाजपा का रहा है। इसलिए जानकार कह रहे हैं कि अगर सिंधिया भाजपा में जाते हैं तो अचंभित नहीं होना चाहिए। सोमवार को सिंधिया की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात का वक्त तय होने की खबर भी आई। हालांकि ऐसी कोई मुलाकात हुई नहीं। लेकिन चर्चा है कि भाजपा ने सिंधिया को कुछ बड़ा ऑफर दिया है। इसमें उन्हें राज्यसभा में लाकर केंद्र में मंत्री बनाने या फिर कमलनाथ सरकार गिरने की स्थिति में मध्य प्रदेश में उनके नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनाने जैसा कुछ हो सकता है।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि राज्य भाजपा का एक बड़ा तबका सिंधिया को पार्टी में लाने पर अपनी मुहर लगा चुका है। वैसे यह सब सियासी कवायद ही कही जा रही है। ना भाजपा की ओर से और ना ही सिंधिया की ओर से अब तक इस बारे में कुछ खुलासा किया गया है।

सिंधिया की नाराजगी को कांग्रेस का एक तबका उचित नहीं मानता। एक नेता का कहना है कि कांग्रेस ने सिंधिया को कई बार सांसद बनाया। केंद्र में मंत्री बनाया। वे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी रहे। कमलनाथ को पीसीसी चीफ बनाया गया तो राहुल ने 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्हें चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाया। सिंधिया को राहुल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव का भी दायित्व दिया था। लेकिन लोकसभा चुनाव में हुई हार के बाद राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया तो सिंधिया ने भी पद छोड़ दिया। लोकसभा चुनाव हारने के बाद से सिंधिया राज्य की सियासत में एक छोर पर हैं तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दूसरे छोर पर।