जमीयत उलेमा हिंद के आहन पर देश भर में करीब 1900 शहरों में केब बिल के खिलाफ शांतिपूर्वक प्रदर्शन, काली पट्टी बांधकर की जुमे की नमाज अदा!

नई दिल्ली। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के आह्वान पर नागरिकता कानून के खिलाफ देशभर में मुसलमानों ने शुक्रवार को काली पट्टी बांधकर जुमे की नमाज अदा की और शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन किया। राजधानी के जंतर-मंतर पर प्रमुख कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जबकि देश के 1915 शहर, जिला और कस्बों से विरोध प्रदर्शन की बात सामने आई है।
राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर आयोजित विरोध प्रदर्शन के दौरान जमीयत के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि नागरिकता कानून मुसलमानों के खिलाफ नहीं बल्कि देश के संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ है। इस कानून को किसी भी सूरत में अमल में नहीं लाना चाहिए। इससे धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा मिलेगा। यह लोगों को बांटने का काम करेगा। उन्होंने कहा कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी सरकार ने असम में एनसीआर कराने का फैसला लिया था, नतीजतन वहां के 19 लाख लोगों की नागरिकता खतरे में पड़ गई। उसमें मुसलमानों से दो गुना से ज्यादा आबादी हिंदुओं की है।
उन्होंने कहा कि कोई भी कानून बनाने से पहले सरकार को काफी सोचना-विचारना चाहिए। जमीयत महमूद गुट प्रदर्शन और जुलूस नहीं निकाल पाए महमूद मदनी ने कहा कि इस कानून के बहुत सारे नकारात्मक पहलू हैं, जिस पर सरकार ने गंभीरता से सोचा ही नहीं। इस मौके पर जमीयत की तरफ से राष्ट्रपति को एक ज्ञापन भी सौंपा गयाज जिसमें कहा गया कि यह कानून सांप्रदायिकता से प्रेरित है। इसलिए हम इस कानून की निन्दा करते हैं। यह कानून भारत की नागरिकता के लिए धर्म को कानूनी आधार बनाता है। इसका उद्देश्य तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान से आने वाले प्रताड़ित अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता देना बताया गया है लेकिन यह कानून धर्म के आधार पर उनमें भेदभाव करता है। इससे धर्म के आधार पर नागरिकता को विभाजित करने की मंशा स्पष्ट प्रतीत होती है। इस तरह यह देश के बहुलवादी ताने-बाने का उल्लंघन करता है।
जमीयत के महासचिव ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 और 15 में हर व्यक्ति को कानून के सामने समानता दी गई है और राज्य को किसी भी व्यक्ति के प्रति उसके धर्म, जाति या पंथ के आधार पर कानून के सामने भेदभाव करने से रोका गया है। ऐसा करना समानता के मूल सिद्धांत के विरुद्ध है। संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित यह कानून संविधान की भावना और इसकी मूल संरचना का उल्लंघन करता है। यह बिल असम समझौता 1985 का भी उल्लंघन करता है, जो असम में अवैध रूप से आकर के बसने वाले विदेशियों का पता लगाने के लिए कट-ऑफ तारीख के रूप में 25 मार्च,1971 तय करता है।
इस प्रकार मनमाने ढंग से इस समझौते की अनदेखी से उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में शांतिपूर्ण माहौल में खलल पड़ रहा है। हम इस असंवैधानिक और अमानवीय बिल को अस्वीकार करते हैं और अपने महान देश के सभी न्याय-प्रेमी और धर्मनिरपेक्ष नागरिकों से अपील करते हैं कि वे सामूहिक रूप से शांतिपूर्ण तरीके से अपनी आवाज उठाए। हम राष्ट्रपति से अपील करते हैं कि वे इस कानून के माध्यम से लोगों के साथ अन्याय और सांप्रदायिकता के लक्ष्य को रोकने के लिए अपने गरिमापूर्ण पद के प्रभाव का उपयोग करें।
हम सुप्रीम कोर्ट से भी अपील करते हैं कि वह निंदनीय कानून का स्वयं संज्ञान लें, जिसके लागू हो जाने से संविधान की मूल संरचना नष्ट हो जाएगी।