
विशाल हृदय के स्वामी भगत सिंह कोश्यारी (भगतदा) को मिली महाराष्ट्र राज्यपाल की कुर्सी भाजपा रूपी पौधे की सिंचाई, गुड़ाई, निराई के प्रतिफल में मिला है। भगत दा का संपूर्ण जीवन आरएसएस और पार्टी को समर्पित रहा है।
कोश्यारी ने अपनी कर्मभूमि पिथौरागढ़ को बनाया। गरीब परिवार से निकलकर विधान परिषद सदस्य, विधायक, मुख्यमंत्री, राज्यसभा सदस्य, लोकसभा सांसद और अब राज्यपाल की कुर्सी तक पहुंचे 75 वर्षीय कोश्यारी को सादगी की प्रतिमूर्ति के रूप में देखा जाता है।
कोश्यारी के पिता गोपाल सिंह कोश्यारी किसान और मां मोतिमा देवी सामान्य घरेलू महिला थीं। माता-पिता का जीवन सादगी से भरा था। इसकी झलक बचपन से ही भगतदा में भी दिखाई देने लगीं थीं। परिवार की आजीविका का साधन खेती था। इस कारण इनका प्रारंभिक जीवन काफी गरीबी में बीता।
कोश्यारी ने प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय महरगाड़ से प्राप्त की। जूनियर हाईस्कूल की शिक्षा घर से 8 किमी दूर शामा से हासिल करने वाले भगत दा ने हाईस्कूल की शिक्षा कपकोट से और इंटर की शिक्षा पिथौरागढ़ से हासिल की। भारी आर्थिक संकट के बीच भगत दा ने बीए और एमए की पढ़ाई अल्मोड़ा महाविद्यालय से की। एमए अंग्रेजी कोश्यारी वर्ष 1966 में आरएसएस के संपर्क में आए कोश्यारी ने संघ की मजबूती के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। आरएसएस के प्रचारक रहे कोश्यारी ने वर्ष 1977 में पिथौरागढ़ में सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की। सरस्वती शिशु मंदिर में लंबे समय तक अध्यापन किया।
छात्र राजनीति से राजनीति की शुरुआत करने वाले कोश्यारी ने वर्ष 1989 में अल्मोड़ा संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में पराजय के बाद भी कोश्यारी ने जनता से जुड़ाव नहीं छोड़ा।
यूपी में विधान परिषद सदस्य, उत्तराखंड की अंतरिम सरकार में ऊर्जा, सिंचाई, संसदीय कार्य मंत्री का दायित्व संभालने वाले कोश्यारी को अंतरिम सरकार में मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। देश के दोनों सर्वोच्च सदनों राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य रहे कोश्यारी को आज पार्टी ने महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाकर उनकी मेहनत, लगन, समर्पण और संघर्ष का प्रतिफल दिया है।
नामकरण के दिन हयात था नाम
भगत दा 11 भाई-बहनों में नौवीं संतान हैं। उनसे पहले 8 बहनों का जन्म हो चुका था। पारिवारिक जन बताते हैं कि कोश्यारी का नामकरण के समय हयात नाम रखा गया था। एक चचेरे भाई का नाम भी हयात होने के कारण इस होनहार बालक का नाम भगत सिंह रखा गया। कोश्यारी के छोटे भाई जगत सिंह नामती चेटाबगड़ गांव में रहते हैं। वह कई बार प्रधान रह चुके हैं। सबसे छोटे भाई नंदन सिंह कोश्यारी वरिष्ठ पत्रकार हैं।
एटा इंटर कॉलेज में प्रवक्ता रहे कोश्यारी
अल्मोड़ा से एमए की पढ़ाई करने के बाद भगत सिंह कोश्यारी वर्ष 1964 में एटा (उत्तर प्रदेश) के राजा रामपुर इंटर कॉलेज में बतौर प्रवक्ता नियुक्त हुए। कुछ समय तक अध्यापन कार्य करने वाले कोश्यारी पिथौगढ़ लौट आए और इसी धरती को अपनी कर्मभूमि बना लिया।
पर्वत पीयूष साप्ताहिक समाचार पत्र का किया था संपादन
वर्ष 1975 में पर्वत पीयूष साप्ताहिक समाचार पत्र का संपादन और प्रकाशन का कार्य करने वाले कोश्यारी जनसमस्याओं से सीधे जुड़े रहे। अपनी बेबाक टिप्पणी, संपादकीय और अग्रलेखों से जनसमस्याओं को निर्भीकता और निष्पक्षता के साथ उठाते रहे। आज भी पर्वत पीयूष का बदस्तूर प्रकाशन होता है। कोश्यारी के भाई वरिष्ठ पत्रकार नंदन सिंह कोश्यारी इस पत्र का संपादन करते हैं। भगतदा ने उत्तरांचल प्रदेश क्यों पुस्तिका से राज्य स्थापना की मुहिम छेड़ी।
आपातकाल में दो साल तक जेल में रहे कोश्यारी
आपातकाल में भगत सिंह कोश्यारी करीब दो साल तक अल्मोड़ा और फतेहगढ़ जेल की यात्रा की। आपातकाल में 3 जुलाई 1975 से 23 मार्च 1977 तक वह जेल में बंद रहे। जेल यात्रा के दौरान भी कोश्यारी अपने साथी आंदोलनकारियों के लिए उत्प्रेरक की भूमिका में रहे।
भगतदा की सादगी बेमिसाल
भगतदा को सादगी की प्रतिमूर्ति माना जाता है। भगत दा ने वर्ष 2001 में राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद पिथौरागढ़ आए तो दिनभर के व्यस्ततम कार्यक्रम के बाद रात्रि में फुरसत मिली तो अपने पिथौरागढ़ स्थित आवास पर पहुंचे। खिचड़ी खाई और उसी पुरानी पटखाट पर सो गए, जिसमें दशकों से सोते थे। आज भी भगत दा पिथौरागढ़ प्रवास के दौरान पटखाट पर ही सोते हैं। उनका प्रिय भोजन खिचड़ी है।