देहरादून, राज्य ब्यूरो। 58 दिन, 32 लोगों की मौत और 38 घायल। यह है आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड में इस मानसून सीजन में 15 जून से अब तक की तस्वीर। साफ है कि मानसून सीजन में कुदरत का कहर जनजीवन पर भारी पड़ रहा है। अतिवृष्टि के कारण भूस्खलन, भू-धंसाव, नदियों के उफान ने सांसें अटकाई हुई हैं। खासकर, पर्वतीय जिलों में क्षति के मामले सबसे अधिक हैं। आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों पर ही गौर करें तो 15 जून से अब तक चमोली जिले में सबसे अधिक 15 लोगों की जान आपदा में गई। टिहरी व पौड़ी जिलों में चार-चार लोगों ने जान गंवाई है। यही नहीं, बड़ी संख्या में आवासीय भवन जमींदोज हो गए हैं तो दर्जनों रहने लायक नहीं रह गए हैं। पशुधन की हानि भी कम नहीं है।
बोले मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि मानसून सीजन में आपदा के मद्देनजर विशेष एहतियात बरतने के साथ ही सभी जिलाधिकारियों को संवेदनशील स्थल चिह्नित करने और आपदा प्रबंधन तंत्र को सक्रिय रखने के निर्देश दिए गए हैं। क्षति पर अविलंब राहत उपलब्ध कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करने को कहा गया है। अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि आपदा राहत में रिस्पांस टाइम कम से कम हो, इसका विशेष ख्याल रखा जाए।
गत वर्ष 101 लोगों की गई थी जान
उत्तराखंड में पिछले वर्ष आपदा में 101 लोगों की जान गई थी, जबकि 53 घायल हुए थे। तीन लोगों का अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। यही नहीं, 738 भवन पूरी तरह ध्वस्त हो गए थे। 1323 पक्के और 1866 कच्चे भवन आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए। 296 बड़े और 601 छोटे मवेशियों की जान गई थी।