मीर बाकी का नाम अयोध्या विवाद में इसलिए बार-बार आता है क्योंकि कहा जाता है कि इसी शख्स ने बादशाह बाबर के नाम पर यहां मस्जिद बनवाई थी। जानिए मीर बाकी के बारे में सब कुछ……
नई दिल्ली, [Ayodhya land dispute case।..
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या भूमि विवाद पर बुधवार को अंतिम सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने पहले ही साफ कर दिया था कि बुधवार शाम पांच बजे तक ही सभी पक्षकारों की दलीलों को सुना जाएगा।
उम्मीद की जा रही है कि अगले एक महीने के भीतर इस मामले में कोई फैसला भी सुना दिया जाएगा। फैसला किसके हक में जाता है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा; लेकिन अयोध्या और विवादित ढांचे के मामले में सालों से एक नाम प्रमुख तौर पर आया है।
वह नाम है मीर बाकी का। मीर बाकी मुगल बादशाह बाबर का कमांडर था और बाबर के साथ ही भारत आया था। चलिए जानें मीर बाकी के बारे में…
मीर बाकी ही क्यों?
मीर बाकी का नाम अयोध्या विवाद में इसलिए बार-बार आता है, क्योंकि कहा जाता है कि इसी कमांडर ने अपने बादशाह बाबर के नाम पर यहां बाबरी मस्जिद बनवाई थी। मस्जिद के शिलालेखों के अनुसार मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने सन 1528-29 में इस मस्जिद का निर्माण किया था।
एक समय यह उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी मस्जिद हुआ करती थी और विकीपीडिया के अनुसार 1940 के दशक में इसे मस्जिद-ए-जन्मस्थान भी कहा जाता है। इस नाम से अंदाजा लगता है कि इस भूमि को भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता रहा है।
मीर बाकी ने कहां बनाई मस्जिद
माना जाता है कि मीर बाकी ने मस्जिद बनाने के लिए उस वक्त की सर्वोत्तम जगह को चुना और रामकोट यानि राम के किले को इस कार्य के लिए चुना। जनश्रुतियों के अनुसार मीर बाकी ने मस्जिद बनाने के लिए वहां पहले से मौजूद भगवान राम के मंदिर को तोड़ा था।
हालांकि, मुस्लिम पक्ष इस स्थान पर पूर्व में मंदिर होने की बाद को नकारता रहा है। साल 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी पाया कि मस्जिद के नीचे एक पुराना खंडहर मौजूद है, जो हिंदू मंदिर से मिलता-जुलता है।
19वीं सदी की शुरुआत से ही इस जगह को लेकर दोनों पक्षों में विवाद बढ़ता चला गया। मामला कोर्ट तक भी पहुंचा और आखिरकार 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे को गिरा दिया गया।
कौन था मीर बाकी?
मीर बाकी मुगल बादशाह बाबर का एक प्रमुख कमांडर था और मूल रूप से ताशकंद (मौजूदा समय में उज्बेकिस्तान का एक शहर) का निवासी था। माना जाता था कि बाबर ने उसे अवध प्रदेश का शासक यानि गवर्नर बनाया था। बाबरनामा में मीर बाकी को बाकी ताशकंदी के नाम से भी बुलाया गया है।
इसके अलावा उसे बाकी शाघावाल, बाकी बेग और बाकी मिंगबाशी नामों से भी जाना गया। लेकिन बाबरनामा में उसे मीर नाम से नहीं पुकारा गया है। मामले के जानकार किशोर कुनाल का मानना है कि अंग्रेज सर्वेयर फ्रांसिस बुकानन ने 1813-14 मेें बाकी के नाम के आगे मीर लगाया, जिसका अर्थ राजकुमार होता है। माना जाता है कि इसी मीर बाकी ने 1528 में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था, जो आगे चलकर एक बड़े विवाद का कारण बनी।
बाबर ने बाकी को निकाल बाहर किया
जनवरी-फरवरी 1526 में बाकी को शाघावाल नाम से वर्णित किया गया है। उस वक्त बाकी को लाहौर के पास दिबलपुर का क्षेत्र दिया गया और बल्ख (अब अफगानिस्तान) में एक विद्रोही को वश में करने की जिम्मेदारी दी गई। यहां से वापस आने के बाद बाकी को चिन-तिमूर सुल्तान के नेतृत्व में 6-7 हजार सैनिकों का कमांडर बनाया गया। 1528 में इस सेना को एक अभियान पर चंदेरी भेजा गया।
यहां से उनके दुश्मन भाग निकले और चिन-तिमूर सुल्तान को उनका पीछा करने का आदेश मिला। जबकि अधीनस्थ कमांडर (बाकी) को इससे आगे न जाने का आदेश हुआ। मार्च 1528 में चिन तिमूर सुल्तान के ही नेतृत्व में बयाजिद और बिबन (इब्राहिम लोदी के पूर्व कर्मचारी) को अवध के पास पकड़ने के लिए भेजा गया। इन दोनों ने मुगल सेना से लखनऊ का मुगल किला छीन लिया और 1529 तक लखनऊ को अपने कब्जे में रखा। मुगल सेना की इस हार का ठीकरा बाकी के सिर फूटा।
संभवत: उस वक्त लखनऊ किले की जिम्मेदारी बाकी के कंधों पर थी। बाबर हार मानने वाला नहीं था, उसने कुकी और अन्य के नेतृत्व में और सेना भेजी। बयाजिद और बिबन को जब और सेना के आने की भनक लगी तो वे लखनऊ से भाग निकले। लखनऊ किले को कुछ समय के लिए खोना और बाकी के उस पर कब्जा न रख पाने की वजह से बादशाह बाबर उससे बहुत नाराज था।
इसके बाद 13 जून 1529 को बाबर ने बाकी को बुलावा भेजा, 20 जून 1529 को बादशाह ने बाकी को अपनी सेना से निकाल दिया। बाकी के साथ ही अवध में उसकी सेना को भी बाबर ने निकाल दिया,
जिसका वह नेतृत्व करता था। इसके अलावा बाकी का जिक्र बाबरनामा में भी नहीं मिलता। फिर अचानक 1813 में बाबरी मस्जिद से मीर बाकी का नाम जुड़ जाता है। यह नाम जोड़ा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सर्वेयर फ्रांसिस बुकानन ने।
ऐतिहासिक तथ्य कुछ और ही कहानी बयान करते हैं
विवादित ढांचा उसी स्थान पर था, जिसे हिंदू राम जन्मभूमि मानते हैं। हालांकि, रिकॉर्ड्स में 1672 तक उस स्थान पर कोई मस्जिद नहीं थी और न ही किसी बाबर या मीर बाकी का कोई जिक्र था।
यह तो पहली बार बुकानन के सर्वे में सामने आया। बाबरनामा में न तो ऐसी किसी मस्जिद का जिक्र है और न ही मंदिर गिराए जाने का। साल 1574 में तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित् मानस और 1598 में आईन-ए-अकबरी में भी अयोध्या में बाबरी मस्जिद का जिक्र नहीं है।