टिहरी स्कूल वैन हादसे के बाद कंगसाली गांव का आंखों देखा हालः
टिहरी स्कूल वैन हादसे के बाद कंगसाली गांव का आंखों देखा हालः ‘बस इतने ही बच्चे थे गांव में, जो बचे हैं अब वही रह गए’ पछाड़ खाकर गिर रही थी कोई मां… तो कोई ढूंढ रही थी अब भी अपने लाल को टिहरी स्कूल वैन हादसे के बाद कंगसाली गांव का आंखों देखा हालः ‘बस इतने ही बच्चे थे गांव में, जो बचे हैं अब वही रह गए’ टिहरी के कंगसाली गांव में मातम पसरा है. इसी गांव के 9 नौनिहालों की कल स्कूल वैन खाई में गिरने से मौत हो गई थी. टिहरी के ज़िला अस्पताल में मासूमों की लाशें देखने वालों का कलेजा मुंह को आ रहा था और माएं पछाड़ खाकर गिर रही थीं. 4 से 13 साल तक के मासूमों को एक साथ खो देने वाले कंगसाली गांव के निवासी विजयपाल रावत बड़कोट में रहते हैं. प्रतापनगर के पूर्व कांग्रेस विधायक विक्रम सिंह नेगी के साथ वह मंगलवार को ही हादसे के बाद कंगसाली गांव पहुंचे थे. वहां उन्होंने जो देखा वह उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर किया है. आप भी विजयपाल रावत को पढ़िए, उन्हीं की ज़ुबान में… इतना सन्नाटा क्यों हैं भाई? आज मेरे गांव में मातम पसरा है. 9 मासूम सुबह स्कूल के लिए निकले और गांव की दहलीज़ पर उनकी जिंदगी का सफर खत्म हो गया. एक लालची और अन्ट्रेंड ड्राइवर ने 9 सीट वाली टैक्सी में 20 बच्चे बैठा रखे थे क्योंकि उसे 5 किलोमीटर के फासले में दो चक्कर लगाने में तकलीफ थी. खुद सबसे पहले कूद कर उसने अपनी जान बचा ली और 4 साल से लेकर 11 साल की उम्र के 9 मासूमों ने 400 मीटर गहरी खाई में जिंदगी से लड़ते-लड़ते दम तोड़ दिया. सुबह जाना उत्तरकाशी था लेकिन तभी वॉटसअप पर खबर आयी कि टिहरी प्रतापनगर के कंगसाली गांव में बच्चों को स्कूल ले जा रही टैक्सी दुर्घटनाग्रस्त हो गयी. गांव में जिसको भी फोन किया कोई कुछ भी बता पाने की स्थिति में नहीं था. थोड़ी देर बाद पूर्व विधायक विक्रम भाई के साथ एम्स अस्पताल ऋषिकेश पंहुचा, जहां एयरलिफ्ट कर के चार गंभीर रूप से घायल बच्चों को लाया गया. पांच साल के मासूम चार बच्चे बदहवास हालत में एम्बुलेंस से उतारे गए. जिसने भी उन मासूमों के देखा वह सब पथरा से गए. गांव जाने में लग रहा था डर थोड़ी देर बाद बच्चों और डॉक्टरों से मिल कर बच्चों के हालात के जायज़ा लिया. दो बच्चे बेहोशी की हालत में थे लेकिन दो बच्चे बातचीत कर पा रहे थे. एक बच्चा एम्बुलेंस से एम्स में आने वाला था. गांव से आए रिश्ते-नातेदारों का अस्पताल कर्मचारियों से तालमेल बना कर हम सीधा नई टिहरी निकल पड़े जहां पांच घायल बच्चे और थे. उनके परिजनों और बच्चों को सकुशल देख दिल को सुकून मिला. लेकिन अब आगे गांव में जाने में डर लग रहा था. जहां 9 मासूम बच्चों की लाशों के साथ सैकड़ों लोग सड़क पर मातम मना रहे थे. थोड़ी देर में खबर आई की 9 मासूम बच्चों की लाशों को गांव वालों ने टिहरी झील में जलसमाधि दे दी है. हम डैम की दीवार पार कर मदननेगी-टिपरी रोपवे से झील पार प्रतापनगर के मदननेगी पंहुचे. जहां लोग सड़कों पर चुपचाप इधर-उधर बैठे थे. थोड़ी देर में हम उस मनहूस जगह पर पंहुचे जहां आज सुबह बच्चे इस हादसे का शिकार हुऐ थे. दूर नीचे ढंगार में पड़ी गाड़ी को देख बच्चों के दर्द और वेदना का एहसास हुआ. बेटे को गाड़ी में बैठाया और फिर गाड़ी को गिरते देखा घटनास्थल से मात्र 50 मीटर की दूरी पर 7 साल के मासूम आदित्य का घर था. उसकी मां ने बच्चे को गाड़ी में बैठाया ही था कि थोड़ी दूर से खुद अपनी आँखों के सामने गाड़ी को दुर्घटनाग्रस्त होते हुए देखा और अपना बच्चा हमेशा के लिए खो दिया. बच्चे का पिता अरविंद दिल्ली में नौकरी करता है जो अभी शाम तक भी घर नहीं पंहुचा था. थोड़ा आगे गांव की तरफ बढ़े तो 8 साल के मासूम अयान का घर आया. पिता अत्तर सिंह विदेश में नौकरी करने गया है, मां बदहवास होकर कोने में पड़ी थी. दादा-दादी और रिश्तेदार चुपचाप आंगन में बैठे थे. और आगे गांव के रास्ते के नीचे बाजगी हरदास भाई का घर था जिसका 7 साल का बच्चा नई टिहरी अस्पताल में घायल था. दो कदम आगे 5 साल की मासूम वेदिका का घर था. जो अपनी मां के साथ टिहरी अस्पताल में भर्ती थी, और पिता हिमांशु दिल्ली में नौकरी पर है. घर में बूढ़ी दादी रो-रो कर बेहाल थी. पिता बैठा सिर झुकाए, घर से बाहर आ रही चीखें गांव के चौक के ठीक बगल में मुझसे चार साल बड़े रिंकु मामा का घर था. उसका 7 साल का बेटा ईशान और छोटे भाई अजय का 5 साल का मासूम विभान आज इस दुर्घटना में काल का शिकार हो गए. बच्चों की मां का रो-रो कर हाल बुरा था और पिता अचेत अवस्था में बिस्तर पर पड़े थे. कुछ चार एक घरों को छोड़ कर आगे 6 साल के मासूम अभिनव का घर आया, आंगन में गांव के बुजुर्ग और महिलाओं की भीड़ थी. मुझसे पांच-सात साल छोटा बच्चे का पिता सीढ़ी पर चुपचाप बैठा था. ऊपर दो मंजिला से महिलाओं की रोने-चीखने की आवाज़ आ रही थी. हम परिवार को सांत्वाना देकर आगे बढ़े. जहां मेरी फूफू के दो नाती घायल थे जिनमें से एक ऋषिकेश तो दूसरा टिहरी अस्पताल था. पिता मनोज दिल्ली में टैक्सी चलाता जो घर नहीं पंहुच सका था, इसलिए सारा परिवार बच्चों की देखरेख के लिए टिहरी और ऋषिकेश गए थे. मारे जा चुके बेटे को ढूंढ रही थी मां थोड़ा ऊपर सड़क की तरफ बढ़ने पर अरविंद मामा का घर था, दूर से ही चीखने-चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी. इस परिवार ने आज 11 साल के मासूम आदित्य को खोया है और 6 साल का मासूम अखिलेश एम्स में घायल भर्ती है. पिता अरविंद मामा भी चंढ़ीगढ़ में नौकरी करता है जो अभी तक घर नहीं पंहुचा था. मां अपने बच्चों को पुकार रही थी, रोते रोते उनकी प्यार भरी शरारतें बता रही थी. हमसे अपने बच्चों को वापस लाने के लिए कह रही थी और हम निशब्द बैठ कर खुद को असहाय महसूस कर रहे थे. वहां से आगे बढ़ने पर सड़क आ गयी और हम गाड़ी में बैठ कर गांव के पल्ली तरफ खरूली पंहूंचे. मेरा घर यहीं था. सबसे पहले सड़क पर बिछनु मामा के घर गये जिन्होंने बचपन में मुझे गोदी में खिलाया था. उनका 12 साल का मासूम इकलौता चिराग साहिल (गोलू) आज बुझ चुका था. मां रो रही थी, चीख रही थी. उसको चिंता थी उसका बेटा कहीं अकेला है, उसे मच्छर काट रहे होंगे. वह दूसरे कमरे में उसे ढूंढने के लिए उठी, दरवाज़ा खोला और बेहोश हो गई. पानी पिलाया गया, होश में आई फिर रोने लगी. बहन, दादी सब रो रहे थे. इतने ही बच्चे थे गांव में… वहां से थोड़ा नीचे मेरे दोस्त और उसकी पत्नी मेरी फूफू की बेटी, बहन संतोषी का घर आया. उसका पांच साल का बेटा कान्हा ऋषिकेश में गंभीर रूप से घायल था जिसका आज एम्स में ऑपरेशन हुआ. अब वह खतरे से बाहर था. बच्चे का पिता उम्मेद सिंह (बिट्टू) पंजाब में नौकरी करता है लेकिन आजकल घर ही था इसलिए सुबह ही दोनों माता पिता ऋषिकेश चले गए थे. यहां से चार-घर छोड़ छोटे भाई प्रवीन का घर है, जो मदननेगी मे कॉपरेटिव बैंक में नौकरी करता है. उसके दो बेटे भी आज उस मनहूस गाड़ी में थे. जिसमें चार साल के छोटे बेटे वंश का आज देहांत हो गया और 11साल का बड़ा बेटा नैतिक टिहरी अस्पताल में भर्ती था. पत्नी ब्लड प्रेशर डाउन होने से बेहोश थी. घर में सन्नाटा पसरा था. वहां से थोड़ा सा नीचे पैदल आने पर जस्सी भाई का घर था जिसका 6 साल का मासूम बेटा ऋषभ उस दुर्घटना में नहीं बच सका और 10 साल का बेटा प्रिंस ऋषिकेश में गंभीर रूप से घायल था. घर पंहुचा तो बाबा (चाचा) और छोटी मां (चाची) भी चुपचाप सन्न हो कर बैठी थी, कह रही थी, “बिज्जू बस इतने ही बच्चे थे गांव में, जो बचे हैं अब वही रह गए”. ग़लती किसकी? मैंने आज बड़े-बूढ़ों और महिलाओं के साथ गांव के हर नौजवान और बच्चों को भी रोते हुए देखा. आखिर गलती किसकी थी? ड्राइवर की या स्कूल की? बदहाल स्वास्थ्य सेवा की या एजुकेशन सिस्टम की? डीएम की या सीएम की? सांसद की या विधायक की? नौकरी के लिए परदेस गए बाप की या घर में खेत और परिवार संभालती मां की? किस्मत की या बदकिस्मती की? पलायन आयोग वालों कुछ समझ आया कि गांव के लोग गांव में रहने की क्या कीमत चुका रहे हैं? एजुकेशन, स्वास्थ्य, परिवहन के सवाल उत्तराखंड की आवाम के सामने आज भी मुंह उठाए खड़े हैं.